Sunday, March 10, 2013

नारी तुम केवल श्रद्धा हो!

माँ हो तुम, बहन हो, प्रेयसी हो, अर्धांगिनी हो,
तुमने ही जन्मा और जीना सिखाया, फिर पुरुष को तुम्हे सताने का विचार भी क्यों आया !
तुम्हारे समर्पण को मैंने कमजोरी माना, तुम्हारे त्याग को न कभी देखा ना पहचाना!
कभी बातों से, कभी आँखों से, कभी हरकतों से, कभी इरादों से....हर पल तुम्हारा बलात्कार हुआ!
मानवता रोयी, आँखे थर्राई, तन मन में तुम्हारे चित्कार हुआ!
जब भी तुमपर कोई ज़ुल्म हुए, और उसका ना कोई इन्साफ किया,
तुमने अपनी महानता दिखलायी, पूरे दिल से हमको माफ़ किया!
एक बेटा, एक भाई, एक पिता या एक जीवनसाथी समझकर, क्षमा देके तुमने हमें फिर भी अपनाया
आज न जाने क्यों, दिल से तुम्हे आभार प्रकट करने का मन में विचार आया!
नारी तुम केवल श्रद्धा हो, तुम ममत्वय हो....भोग विलास की वस्तु नहीं, तुम जीवन हो, हमारी रक्त संचार हो।
नारी तुम केवल श्रद्धा हो...........

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